Pandit Jawaharlal Nehru जी का  जीवन  परिचय  in Hindi :- 

भूमिका

जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर, 1889 को इलाहाबाद के एक अत्यंत संपन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था, जो इलाहाबाद के प्रसिद्ध बैरिस्टर थे। इनकी माता का नाम स्वरूप रानी था। मोतीलाल पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित थे। आरंभ में नेहरू जी को पाश्चात्य ढंग से पढ़ाया गया। अध्यापक अधिक आध्यात्मिक थे इसलिए नेहरू जी भी आध्यात्मिक बनने लगे। पिता को यह बात पसंद नहीं आई और उन्होंने 1905 में इनको इंग्लैंड भेज दिया। वहाँ नेहरू जी ने सात वर्ष तक अध्ययन किया। 1912 में वकालत पास करके ये भारत आए । पिता की इच्छा थी कि बेटा उनकी तरह ही विख्यात वकील बने, फलत: इन्होंने पिता के साथ वकालत में सहयोग देना शुरू किया। एक तरफ वकालत चलती, तो दूसरी तरफ विख्यात राजनीतिज्ञ मोतीलाल नेहरू के घर आते और राजनीतिक चर्चा करते। फलत: नेहरू जी पर भी कुछ-कुछ राजनीतिक प्रभाव पड़ने लगा, पर वकालत का काम चलता रह

“रूप रूप का ज्योति मोती की,

बनकर चमका वीर जवाहर ।

पंचशील का गायक जग में,

गूँजा था बनकर नर नाहर ।। ‘

Pandit jawaharlal nehru जी का जीवन-परिचय-

इतिहास कतिपय घटनाओं और तिथियों का ही हिसाब-किताब नहीं रखता, अपितु उन व्यक्तियों का पुण्य स्मरण भी कराता है, जो इतिहास को नई दिशा देकर गतिशील बना गए। जैसे-जैसे कालचक्र घूमता रहा, विश्व इतिहास और मानव सभ्यता के इतिहास में अनेक परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों में जो मनुष्य धर्म और दर्शन के क्षेत्र में या ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में या राजनीति और साहित्य के क्षेत्र में प्रकट हुए, उन्होंने विश्व इतिहास को नई दिशा दी। भारत की राजनीति के इतिहास में जवाहरलाल नेहरू ऐसे ही गौरवशाली व्यक्तित्व के रूप में प्रकट हुए। शांति के उपासक, पंचशील के अधिष्ठाता, बच्चों के प्यारे ‘चाचा नेहरू’ विश्व इतिहास में अमर हो गए।

1916 में कौल की पुत्री कमला से जवाहरलाल नेहरू का विवाह हुआ और 1917 में एक लड़की हुई, जिसका नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी रखा गया। कुछ समय बाद एक लड़का पैदा हुआ, पर वह जीवित न रह सका। 1919 में जलियाँवाला बाग के गोलीकांड को देखकर नेहरू जी की रूह काँप उठी। धीरे-धीरे वे राजनीति में सक्रिय होने लगे।

Pandit jawaharlal nehru जी का राजनीति में प्रवेश-

“मरना भला है उसका जो अपने लिए जिए।

जीता है वह इनसान, जो दूसरों के लिए जिए।। “

1930 को रावी के किनारे साँझ के समय तिरंगा फहराते हुए पंडित जवाहरलाल ने कहा, ” स्वतंत्रता प्राप्त करके ही रहेंगे।” कांग्रेस के इस प्रस्ताव से अंग्रेज़ बौखला उठे। 1936 में बीमारी के कारण कमला जी का देहांत हो गया। इधर मोतीलाल जी की भी मृत्यु हो गई । यद्यपि गृहस्थी बरबाद हो गई, परंतु राजनीतिक क्षेत्र आबाद हो गया। नेहरू जी अब राजनीतिक क्षेत्र में अधिक सक्रिय हो गए। ये आंदोलन करते और जेल जाते । गाँधी जी के पथ-प्रदर्शन से नेहरू जी के व्यक्तित्व का विकास होने लगा। 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू हुआ। बड़े-बड़े नेता जेल में डाल दिए गए। देश में बहुत हलचल हुई। विश्वयुद्ध समाप्त हो गया। अंग्रेजों की विजय तो हुई, पर वे जर्जर हो गए। 1945 में शिमला कान्फरेंस हुई, पर वह असफल रही। 1946 में अंतरिम सरकार बनी, पर जिन्ना के कारण वह भी असफल ही रही। आखिर भारत का विभाजन करके 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ चले गए।

प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू जी आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। तब भारत के सामने एक नहीं, अनेक समस्याएँ मुँह बाए खड़ी थीं। इन्होंने वीर पुरुष की तरह उनका डटकर मुकाबला किया। तकनीकी उन्नति, वैज्ञानिक उन्नति, शिक्षा संबंधी उन्नति, आर्थिक उन्नति तात्पर्य यह कि इन्होंने भारत को हर तरफ से उन्नत करने का प्रयास किया। इनके जीवनकाल में तीन बार आम चुनाव हुए-1952. 1957 और 1962 में। तीनों ही बार ये भारत के प्रधानमंत्री बने तथा तीनों बार कांग्रेस को बहुमत मिला। इनकी पंचशील की योजना का सम्मान पूरे भारत में हुआ। 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना आरंभ हुई। देश ने औद्योगीकरण की ओर कदम बढ़ाया। वैज्ञानिक प्रगति के इस युग में ऐसा किए बिना उन्नति संभव नहीं थी। वैज्ञानिक क्षेत्र में अनुसंधान हुए। नेहरू जी औद्योगिक इकाइयों को आधुनिक मंदिर मानते थे। इनके कार्यकाल में ही परमाणु शक्ति के विकास की आधारशिला रखी गई रेल के इंजन, कारें और हवाई जहाज का निर्माण अपने देश में आरंभ हुआ। विदेश नीति के क्षेत्र में भी भारत पूरे विश्व में उभरकर सामने आया। पंचशील और सहअस्तित्व के सिद्धांतों को अपनाया गया। रूस, अमेरिका और चीन के साथ दोस्ताना संबंध बने। इंडोनेशिया और कोरिया के साथ हम जुड़े। 1962 में जब चीन ने मैत्री के नारे के साथ भारत को धोखा दिया तो नेहरू जी को बहुत सदमा पहुँचा। उसके बाद भारत सैन्य प्रगति की ओर बढ़ा। शस्त्रों के बड़े-बड़े कारखाने लगे। इस प्रकार वे नए भारत के सर्जक बने।

Pandit jawaharlal nehru जी का व्यक्तित्व-

– जवाहरलाल नेहरू कभी भी कठिन कार्यों से घबराते नहीं थे। वे बहुत मेहनती थे। इनका विश्वास था कि पक्के इरादे से कोई कार्य किया जाए, तो कोई कारण नहीं कि वह पूरा न हो । इनका मानना था कि जीवन एक संग्राम है तथा संघर्षो से जीवन निखरता है। ये जिंदगी इसलिए नहीं जीना चाहते थे कि सुख भोग सकें। ये जीवन इसलिए नहीं चाहते थे कि इन्हें ठाट-बाट का नशा था या अधिकारों का उन्माद था, बल्कि इनके विचार में जीने का अर्थ था जनता की भलाई करना, संघर्षो से दो-दो हाथ करना और तपस्या के पथ पर चलना । पंचशील के नायक के मन में मानवता के प्रति सहानुभूति थी।

ये एशिया की एक महान विभूति थे। इनको सारा विश्व आदर की दृष्टि से देखता था। इन्होंने 29 मई, 1964 को सदा के लिए आँखें मूंद लीं। इनके निधन पर संपूर्ण विश्व क्रंदन कर उठा।

Pandit jawaharlal nehru जी का बाल दिवस से नाता –

जवाहरलाल नेहरू अपने कोट पर गुलाब का फूल लगाया करते थे। इनका कहना था कि जितनी देर जियो, गुलाब की तरह मुस्कराते हुए जियो अपने अच्छे कामों की महक बिखेरते हुए जियो। इन्हें नन्हे बच्चों से बहुत प्यार था। इनका जन्म बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बच्चे इन्हें प्यार से ‘चाचा नेहरू’ कहकर पुकारते हैं। बाल दिवस के दिन विद्यालयों में अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं।

उपसंहार-

– नेहरू जी के असरदार व्यक्तित्व के सम्मुख इनके विरोधी भी दब जाते थे। राजनेता होने के साथ-साथ ये ऊँचे दर्जे के लेखक और वक्ता भी थे। नेहरू जी का लेखक के तौर पर व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था। इन्होंने ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’, ‘विश्व इतिहास की झलक’, ‘मेरी कहानी’ तथा ‘भारत की खोज’ जैसी बहुचर्चित पुस्तकें लिखीं। नेहरू जी का व्यक्तित्व निर्विवाद रूप से अप्रतिम रहा है। विश्व शांति का मसीहा हमारे बीच अपने क्रियाकलापों, रहन-सहन और आचार-विचार की अमिट छाप छोड़ गया।

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