Indira Gandhi Biography :प्रियदर्शिनी इंदिरा गाँधी IN HINDI

” मिट जाते जो मातृभूमि पर,

बनते वे इतिहास हैं।

मस्तक धूल चढ़ाने उनके,

झुक जाते आकाश हैं ।। “

जब भी इतिहास में घटी घटनाओं का लेखा-जोखा किया जाता है, तो उन पुण्य आत्माओं का पुण्य स्मरण भी होता है, जो इतिहास को नई दिशा देकर गतिशील बना गए । राजनीति के इतिहास में इंदिरा गाँधी एक ऐसी व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने भारतीय इतिहास को अनेक मोड़ दिए। इनका नाम सदैव जगमगाता रहेगा।

जीवन-परिचय-

इंदिरा गाँधी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू की सुपुत्री थीं। इंदिरा जी का जन्मदिन, वह शुभ दिन था, जिस दिन लेनिन ने रूस में जारशाही के विरुद्ध जनक्रांति का बिगुल बजाया था । वह ऐतिहासिक दिन था – 19 नवंबर, 1917 | इंदिरा जी के व्यक्तित्व में दूरदर्शिता, ओजस्विता और साहस का अद्भुत समन्वय मिलता है। विजय लक्ष्मी पंडित इंदिरा जी की बुआ थीं।

शिक्षा –

बालिका इंदिरा की शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध शांति निकेतन में हुआ। पं० जवाहरलाल नेहरू अपनी पत्नी कमला नेहरू को चिकित्सा के लिए स्विटज़रलैंड ले गए, तो इंदिरा जी भी साथ गईं। वहाँ एक अच्छे विद्यालय में इन्हें प्रवेश मिल गया। बाद में इन्होंने ऑक्सफोर्ड में भी शिक्षा प्राप्त की, किंतु इनकी वास्तविक शिक्षा पं० नेहरू के साथ देश – विदेश की यात्राओं में तथा अपने पिता के लिखे पत्रों के आधार पर हुई।

विवाह –

ये 1942 में फिरोज गाँधी के साथ प्रणय सूत्र में बँधी । ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पूरे ज़ोर पर था, तब नवदंपती को लगभग 13 मास तक कारावास में रहना पड़ा। आगे इंदिरा जी को राजीव गाँधी तथा संजय गाँधी जैसे दो पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई ।

प्रधानमंत्री के रूप में इक्कीस वर्ष की अवस्था में ये कांग्रेस की सदस्या बनीं। पंडित नेहरू के निधन के बाद ये तत्कालीन प्रधानमंत्री के अनुरोध पर सूचना तथा प्रसारण मंत्री बनीं। लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद जनवरी 1966 को ये सर्वसम्मति से देश की प्रधानमंत्री चुनी गई। इसी बीच लोकसभा के दो चुनाव हुए-पहला चुनाव 1967 में और दूसरा 1971 में। 1971 में इन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली। इनका नारा था – ‘गरीबी हटाओ, समाजवाद लाओ।’ इन्होंने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए; जैसे- बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिवीपर्स का उन्मूलन, पाकिस्तानी सेना द्वारा आत्मसमर्पण, बांग्लादेश का एक नवीन स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठापन, रूस के साथ मैत्री संस्थापन और भारत के सबल अस्तित्व का स्थापन आदि ।

1973 से शासन में कुछ सुस्ती आने लगी और संजय गाँधी उभरने लगे। संजय गाँधी की नीतियाँ भले ही ठीक थीं, फिर भी देशवासियों को वे ठीक नहीं लगीं। लोगों के साथ-साथ पार्टी में भी असंतोष फैलने लगा। इधर महँगाई बढ़ने लगी, भारत की परिस्थितियाँ इंदिरा गाँधी के खिलाफ़ होने लगीं।

1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा जी के चुनाव को अवैध करार दिया। जून 1975 से मार्च 1977 तक की अवधि में इन्होंने देश में आपातकाल घोषित कर दिया। जिस दिन आपातकाल की घोषणा हुई, वह दिन भारतीय राजनीति का काला दिन था और इंदिरा जी के जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। मार्च 1977 में ये रायबरेली से लोकसभा का चुनाव हार गईं। इनका दल पूरी तरह साफ हो गया। कांग्रेस बुरी तरह पराजित हुईं, किंतु सत्ताधारी जनता पार्टी आपसी कलह, फूट और कुर्सी की होड़ में दो वर्ष में ही बिखर गई। मध्यावधि चुनाव हुए और कांग्रेस को इस बार भारतीय जनता ने विजय दिलाई तथा इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बनीं।

व्यक्तित्व –

इंदिरा गाँधी में कुछ ऐसे गुण थें, जिनके आगे भारतीय ही नहीं संसार के सभी लोग सिर झुकाते रहे हैं। ये जो कुछ भी कहतीं, अधिकार से कहतीं। बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी ये हिम्मत नहीं खोती थीं। अपने विरोधियों से निपटना ये खूब जानती थीं। ये अत्यंत साहसी तथा सूझ-बूझ की धनी थीं। इन्होंने विश्वमंच पर अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य किए। ये विकासशील देशों की अग्रणी नेता तो थीं ही विकसित देश भी इनकी राय को अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानते थे। ये अपने समय की सर्वोच्च राजनीतिज्ञ थीं। इन्होंने अपनी बुद्धि कौशल तथा साहस से यह सिद्ध कर दिया कि नारी भी विश्व की गौरव गरिमा में बहुमुखी तथा चहुँमुखी वृद्धि कर सकती है।

नृशंस हत्या –

31 अक्तूबर, 1984 को इंदिरा गाँधी के अंगरक्षकों ने ही गोली मारकर इनकी हत्या कर दी। विश्वासपात्रों ने ही विश्वासघात करके इतिहास को कलंकित कर दिया। इनकी हत्या के समाचार से सारा विश्व स्तब्ध रह गया। आज ये हमारे बीच नहीं हैं, फिर भी ये अपने महान कार्यों के द्वारा भारत के जन-जन में बसी हुई हैं। इनकी अंतिम इच्छा के अनुसार इनकी अस्थियों का विसर्जन हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों पर किया गया।

“जब तक सूरज चाँद रहेगा ।

इंदिरा तेरा नाम रहेगा ।। “

उपसंहार –

इंदिरा गाँधी का बाहरी व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली था। इनकी वाणी में गंभीरता और ओज था। इनका अनेक बार संकटों से सामना हुआ, परंतु ये हर बार धैर्यपूर्वक सब कुछ सुनतीं, सहतीं तथा संकटों से छुटकारा भी प्राप्त करतीं । विश्व में शांति स्थापित करने के लिए इन्होंने अथक प्रयास किए। इनमें निर्णय लेने और कार्य को पूरा करने की अद्भुत क्षमता थी। एक अच्छी वक्ता, लेखिका एवं देशभक्त महिला का पार्थिव शरीर यद्यपि पंचतत्व में विलीन हो चुका है, परंतु ये इतिहास का अमिट अध्याय बन गई हैं।

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